- लगाया आरोप, केन्द्र की गलत नीतियों के कारण आखरी सांसे गिन रहे लघु उद्योग
- पिछले सात वर्षों में देश के आधे सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग बंद हो चुके
पटना। केंद्र सरकार पर पूंजीपतियों का हितैषी होने का आरोप लगाते हुए जदयू के राष्ट्रीय महासचिव व प्रवक्ता राजीव रंजन ने आज अपने एक्स हैंडल पर लिखा है कि भाजपा के राज में भले ही अदानी-अंबानी जैसे बड़े पूंजीपतियों की मौज आयी हो, लेकिन छोटे उद्योगों पर सरकार का कहर बरस रहा है। देश की मैन्युफैक्चरिंग में 36% का योगदान देने वाला यह सेक्टर भाजपा की गलत नीतियों के कारण आखरी सांसे गिन रहा है। हालात ऐसे हैं कि पिछले 7 वर्षों में देश के आधे सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्योग बंद हो चुके हैं।
उन्होंने दावा किया है कि मोदी सरकार में छोटे उद्योगों की दिन ब दिन बदतर होती जा रही इस हालत की गवाही खुद एमएसएमई मंत्रालय के आंकड़े दे रहे हैं। आंकड़ों के मुताबिक साल 2016 में देश में जहां कुल 6.25 करोड़ एमएसएमई थे, वहीं अब इनकी तादाद 48% घटकर 3.25 करोड़ रह गई है। उद्यम पोर्टल के मुताबिक बीते 3 साल 5 महीनों में ही 32.5 हजार एमएसएमई बंद हो गये हैं।
उन्होंने लिखा कि देश से कुल निर्यात में एमएसएमई की हिस्सेदारी तीन साल में करीब 50% से घटकर 44% से कम रह गई है। दूसरी तरफ इसी दौरान समग्र निर्यात 26 लाख करोड़ से करीब 43% बढ़कर 37.4 करोड़ रुपए का हो गया। यानी सरकार की लघु उद्योग विरोधी नीतियों का सीधा लाभ बड़ी कंपनियां उठा रही हैँ।
जदयू महासचिव ने लिखा है कि देश की अर्थव्यवस्था में इन छोटे उद्योगों के महत्व का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि देश के कुल रोजगार में इनकी हिस्सेदारी 28% है, वहीं जीडीपी में यह 29% का योगदान देते हैं। इसके बावजूद इनकी बदतर होती स्थिति साफ़ इशारा करती है कि सिर्फ बड़े उद्योगपतियों को और अमीर बनाने के लिए यह सारा खेल खेला जा रहा है। बड़े पूंजीपतियों की गुलाम बनी केंद्र सरकार छोटे उद्योविशेषज्ञों का खात्मा कर, उनका लाभ भी बड़े बिजनेस घरानों को दे देना चाहती है।
उन्होंने लिखा कि छोटे उद्योगों की इस दुर्दशा के लिए विशेषज्ञ भी सरकार की नीतियों को ही जिम्मेवार मानते हैं। हाल के वर्षों में सरकार द्वारा थोपे गये कैशलेस लेनदेन, डॉक्यूमेंटेड सर्विसेज, जीएसटी, ई-कॉमर्स मार्केटिंग, वैश्विक मानक और सामाजिक सुरक्षा से संबंधित किये गये बदलावों ने पारंपरिक उद्यमियों को बड़ा झटका दिया है, जिन्हें ऐसे नियमों की आदत नहीं थी। इसका सीधा लाभ बड़ी कंपनियों को मिल रहा है।