- देश को 4 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनाने का केंद्र सरकार का दावा सिर्फ एक छलावा
- हैसियत से अधिक कर्ज विनाश की ओर ले जाता है, लेकिन सरकार चेतने को तैयार नहीं
- मोदी सरकार के नौ सालों में तिगुना बढ़कर 155 लाख करोड़ से ज़्यादा का क़र्ज देश पर
- आज देश में पैदा होने वाले हरेक बच्चे पर भी एक लाख रुपए से अधिक से का कर्ज
पटना। अपने एक्स हैंडल के जरिये केंद्र सरकार की गलत आर्थिक नीतियों पर जदयू के राष्ट्रीय महासचिव व प्रवक्ता राजीव रंजन ने निशाना साधा है। अपने पोस्ट में आज यानी शुक्रवार को उन्होंने लिखा है कि एक तरफ केंद्र सरकार जनता को विकास के झूठे सपने दिखा रही है, तो दूसरी तरफ देश तेजी से कर्ज के मकड़जाल में फंसता जा रहा है। कहा है कि प्रख्यात एजेंसी आईएमएफ की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक देश की हालत इतनी खस्ता हो चुकी है कि यदि हालात ऐसे ही रहे तो भारत का सरकारी ऋण मध्यम अवधि में जीडीपी के 100 फीसदी से भी ऊपर जा सकता है। रिपोर्ट के अनुसार देश को लंबी अवधि में कर्ज चुकाने में दिक्कत भी हो सकती है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लक्ष्य हासिल करने में देश को बहुत निवेश करना होगा.
एक अन्य पोस्ट में उन्होंने लिखा है कि इससे साफ़ है कि देश को 4 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनाने का केंद्र सरकार का दावा सिर्फ एक छलावा है। सरकार कर्जा लेकर घी पी रही है जिसका खामियाजा आने वाले समय में आम आदमी को भुगतना पड़ेगा। सामान्य आदमी भी समझ सकता है कि हैसियत से अधिक कर्ज विनाश की तरफ ले जाता है, लेकिन सरकार चेतने को तैयार नहीं है।
जदयू महासचिव ने लिखा है कि मोदी सरकार ने देश की आर्थिक व्यवस्था को किस तरह कुचला है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आजादी के बाद से देश के 14 प्रधानमंत्रियों ने कुल मिलाकर मात्र 55 लाख करोड़ रुपए का कर्ज़ा लिया था, लेकिन मोदी सरकार ने सिर्फ पिछले नौ सालों में इसे तिगुना बढ़ाते हुए 100 लाख करोड़ से ज़्यादा का क़र्ज़ा देश के माथे मढ़ दिया, यानी देश का कर्ज 155 लाख करोड़ तक जा पहुँचा है।
उन्होंने लिखा है कि इससे साफ़ है कि आज देश में पैदा होने वाले बच्चे पर भी 1 लाख से अधिक से का कर्ज है। केंद्र सरकार को बताना चाहिए कि जब देश में आर्थिक असमानता विकराल रूप धारण कर चुकी है, देश की 40% सम्पत्ति सिर्फ 1% लोगों के पास है, तब आसमान छूते इस कर्ज से आम आदमी को क्या लाभ मिल रहा है।