भोला नाथ
लोकसभा चुनाव सामने है और भाजपा ने बिहार में जिस तरह की सियासी फील्डिंग सजाई है, उससे सभी चकित हैं। कई सवाल उठ रहे हैं, क्या भाजपा यादव समाज से निराश हो चुकी है। क्या उसे यह लग गया है कि लालू प्रसाद की वजह से यादव समाज या अल्पसंख्यक वर्ग का समर्थन उसे कतई नहीं मिलने वाला। क्या उसने अभी से हार मान ली है? क्या वह भविष्य की राजनीति धानुक, कुर्मी, कोईरी, बनिया, अतिपिछड़ा और सवर्ण समाज के भरोसे ही करना चाहती है? या वह यह मानकर चल रही है कि यादव समाज या अल्पसंख्यक तबके का जो वोट उसे मिलना है, वह तो उसे मिल ही जाएगा। फिर इसके लिए मेहनत क्या करना है?
यादव वोटर साधने को नित्यानंद बने थे अध्यक्ष
आपको याद होगा कि एक समय भाजपा ने यादव वोटरों को साधने के लिए नित्यानंद राय को बिहार का अध्यक्ष बनाया था। तब इसी समाज के भूपेन्द्र यादव बिहार भाजपा प्रभारी थे। नित्यानंद राय के अध्यक्ष (नवम्बर 2016 से सितम्बर 2019) रहते हुए लोकसभा चुनाव में एनडीए ने 40 में 39 और भाजपा ने 17 में सभी 17 सीटें जीतीं थीं। यह एक बड़ी उपलब्धि थी। संकेत था कि भाजपा यादव समाज के इन दो बड़े नेताओं के बूते बिहार में लालू प्रसाद की चूनौती को ध्वस्त कर सकती है। नित्यनंद राय केन्द्र की सरकार में मंत्री बने और अगले वर्ष 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा दूसरे नम्बर की पार्टी बनकर सामने आई।
भाजपा ने लालू के आगे हथियार डाल दिया !
लेकिन, इस बार के मंत्रिपरिषद के विस्तार जिस तरह यादव समाज की उपेक्षा की गई उससे लग रहा है कि भाजपा ने लालू प्रसाद के आगे हथियार डाल दिया है। मान लिया है कि वह यादव समाज पर लालू प्रसाद की तिलस्मी पकड़ नहीं तोड़ सकती है। एनडीए सरकार के मंत्रिमंडल में इस बार यादव समाज से किसी को प्रतिनिधित्व नहीं दिए जाने से आखिर क्या मैसेज जाता है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी पार्टी से विजेन्द्र यादव को तो मंत्री बनाया ही, जमा खान को भी अल्पसंख्यक समुदाय से प्रतिनिधित्व दिया। उधर, भाजपा ने न तो यादव और न ही अल्पसंख्यक समुदाय से किसी चेहरो को जगह दी। पिछली बार सैयद शाहनवाज हुसैन बतौर मुस्लिम चेहरा भाजपा से मंत्री बने थे। वहीं, राम सूरत कुमार राय को यादव समाज से मंत्री बनाया गया था। मगर, इस बार भाजपा ने इन दोनों समुदाय को मंत्रिपरिषद में जगह नहीं दी। इससे यह संदेश गया कि शायद भाजपा ने इन दोनों समुदाय से वोट हासिल करने में मदद की उम्मीद छोड़ दी है। यहां गौरतलब है कई भाजपा नेता यह भी दावा करते हैं कि पीएम नरेन्द्र मोदी के चेहरे पर अल्पसंख्यक वर्ग का भीे वोट उसे मिलता है। अभी भाजपा में विधायक और विधानपार्षदों की संख्या दर्जन भर है। दो विधान पार्षद छोड़ दें तो बाकी विधायक हैं।
स्पीकर बनाकर मंत्री की कमी पूरी नहीं की जा सकती
भाजपा नेतृत्व के कुछ खास पैरावीकार तर्क दे रहे हैं कि नंदकिशोर यादव को विधानसभा का अध्यक्ष बनाकर पार्टी ने यादव समाज के प्रतिनिधित्व की कमी पूरी कर दी है। उनका कहना है कि स्पीकर को भी तो सरकार का मंत्री का दर्जा हासिल रहता है। वहीं, भाजपा का दूसरा खेमा इससे इत्तेफाक नहीं रखता है। उसका तर्क है कि वर्ष 2020 में जब एनडीए की सरकार बनी थी, तब स्पीकर भूमिहार समाज के विजय कुमार सिन्हा बने थे। इस तरह भूमिहार समाज का प्रतिनिधित्व तो हो ही गया था, तब उनके ही समाज से आने वाले जीवेश कुमार को सरकार में मंत्री क्यों बनाया गया था। उनका दोटूक कहना है कि किसी खास समाज से स्पीकर बनाकर मंत्री की कमी पूरी नहीं की जा सकती।
नेतृत्व के हाल के कई फैसलों पर भगवा पार्टी में उठ रहे सवाल
हाल में विधान पार्षदो’ की खाली हुईं सीटों के लिए भाजपा ने अपने कोटे से जो नाम तय किए और अधिकतर ऊपरी सदन के सदस्यों को ही मंत्री बनाए जाने पर भी सवाल उठ रहे हैं। तीन – तीन चार – चार बार के जीते विधायकों और क्षत्रीय समाज की उपेक्षा को लेकर भी नेतृत्व पर आरोप लगे हैं। क्षत्रीय समाज के कुछ विधायकों ने तो बाकायदा बैठक कर अपनी नाराजगी का इजहार किया। यही नहीं उनके द्वारा बिहार प्रभारी विनोद तावड़े को फोन कर खरी-खरी सुना देने की भी चर्चा है।
समर्पित और अनुभवी नेताओं को मौका नहीं देना खटक रहा
उनका आरोप कि इस बार मंत्री और विधान पार्षद बनाने का पार्टी का क्या आधार रहा यह किसी के समझ में नहीं आ रहा है। कदरन नए और अनजान चेहरों को पार्षद बनाए जाने के पीछे उनको कार्यकर्ता बताए जाने के तर्क को भी लचर दलील माना जा रहा है। वहीं, अरसे से पार्टी के प्रति समर्पित रहे और अनुभवी नेताओं – कार्यकर्ताओं को मौका नहीं दिया जाना कई लोगों को खटक रहा है। भाजपा के जिन तीन विधान पार्षदों का कार्यकाल पूरा हो रहा था, उनमें दो को तो ड्राप कर दिया गया, मगर एक को मौका दिया गया। यही नहीं, दो को ड्राप कर बदले में जिन दो चेहरों को लाया गया, उनके चयन ने भी सबको चौंकाया। साफ है कि भाजपा भविष्य की राजनीति धानुक, कुर्मी, कोईरी, बनिया, अतिपिछड़ा और सवर्ण समाज के भरोसे ही करना चाहती है।