नीतीश ने लालू व इन संकेतों से भांप लिया था इंडी का फ्यूचर, … और मारी पलटी!
भोला नाथ
पटना, 31 मार्च। लोकसभा चुनाव – 24 को लेकर अभी इंडी में जो चल रहा है, उसके बरअक्स देखें तो जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस विपक्षी गठबंधन का भविष्य भांप लिया था। आखिर वे संकेत क्या थे जिनको नीतीश कुमार ने समय रहते समझ लिया था। वह कैसे जान गए थे कि लालू यादव महागठबंधन में सीट बंटवारे में अपनी मनमानी से बाज नहीं आएंगे। आप सोचिए, नीतीश विपक्षी महागठबंधन में होते और लालू इस तरह मनमाने तरीके से सीट बांटते हो उनकी क्या स्थिति रहती। नीतीश कुमार के व्यक्तित्व पर गौर करें तो वह कांग्रेस नेताओं की तरह तो अपने होंठ सिल कर नहीं रहते। यह ठीक है कि सीटों के बंटवारे में लालू यादव की मनमानी पर कोई कांग्रेस नेता कुछ नहीं बोल रहा, मगर क्या यह जदयू के साथ रहते संभव था। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डा. अखिलेश प्रसाद सिंह इसे आलाकमान का फैसला बताकर कन्नी काट वरहे हैं, वहीं एक पूर्व अध्यक्ष अनिल शर्मा ने तो विरोध में इस्तीफा ही दे दिया है।
नीतीश की ईमानदार कोशिश पर कांग्रेस, लालू, ममता और अरविंन ने फेरा पानी
नीतीश कुमार पर यह आरोप लगता रहा है कि वह कम सीटें लाकर भी सीएम बन जाते हैं। लेकिन, आखिर कुछ तो अधिक सीटों वाले बड़े दलों की मजबूरी रहती होगी, जिसके चलते वे उनको सीएम की कुर्सी पर बैठाते हैं। यह भी तो सच्चाई है कि वह जिसके साथ होते हैं, बिहार में उसीकी सरकार बनती है। इसमें कोई शक नहीं कि बिहार में विपक्षी महागठबंधन की सरकार में मुखिया रहते नीतीश कुमार ने पूरी ईमानदारी से भाजपा के खिलाफ एक मजबूत विकल्प खड़ा करने की कोशिश की। लेकिन, कांग्रेस के अड़ियल रुख, राजद सुप्रीमो लालू यादव के दांव-पेंच, बंगाल सीएम व तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी और दिल्ली सीएम एवं आप अध्यक्ष अरविंद केजरीवाल की चालाकी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की कोशिश पर पानी फेर दिया।
कांग्रेस की वजह से इंडी में सीट शेयरिंग पर नहीं बनी सहमति
जिस वक्त भाजपा चुनावी (लोस-24) शतरंज की बिसात पर एक-एक मोहरे सावधानी से बिछा रही थी, उस वक्त कांग्रेस राष्ट्रीय बड़ी पार्टी का दम्भ भरने और इसके नेता ‘यात्रा’ की सियासत में उलजे थे। क्षेत्रीय पार्टियों को छोटा समझते हुए कांग्रेस विपक्षी गठबंधन में अपने लिए 300 से अधिक सीटें सुरक्षित कर लेना चाहती थी। उधर, क्षेत्रीय दल अपने असर वाले राज्यों में अधिक सीटें चाहते थे। और इसी वजह से अपने लिए इंडी में सीट शेयरिंग पर सहमति नहीं बन पा रही थी। नीतीश कुमार बार-बार यह कह रहे थे कि देर हो रही है, एक-एक सीट पर विचार कर रणनीति तय होनी चाहिए। ऐसे क्रूशियल समय पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी की ‘यात्रा’ पर भी कई बार सवाल उठा।
जदयू से लगातार उठ रही थी नीतीश को संयोजक बनाने की मांग
उधर, विपक्षी महागठबंधन में निर्णय में अतिशय देर के मद्देनजर जदयू के नेता बाकायदा यह मांग करने लगे कि नीतीश कुमार को इंडी का संयोजक बनाया जाना चाहिए। इस बात से किसे इंकार होगा कि जदयू नेताओं की यह मांग बिना पार्टी आलाकमान की सहमति से नहीं हो सकती थी। इंडी की बैठक दर बैठक होती जा रही थी और इस पर कोई ठोस निर्णय नहीं हो पा रहा था।
लालू के बयान ने किया आग में घी का काम
आग में घी लालू यादव ने यह कहकर डाला कि इंडी में कोई एक ही संयोजक नहीं होगा। हर तीन चार स्टेट पर एक संयोजक बनेगा। साफ है कि लालू का यह बयान नीतीश कुमार के इंडी में बढ़ते कद को कम करने के लिए था। विपक्षी एकता की सोच नीतीश कुमार के दिमाग की ही उपज थी, इसे किसी को इंकार नहीं हो सकता। इंडी को सफल बनाने के लिए वह जिस तरह की ईमानदार कोशिश कर रहे थे, उससे भाजपा में भी बेचैनी थी। उसके नेताओं को यह साफ लग रहा था कि यदि इंडी कामयाब हुआ तो लोस चुनाव -24 में जीत की उनकी राह मुश्किल हो जाएगी।
रही सही कसर ममता – केजरीवाल की चालाकी ने पूरी कर दी
लालू यादव के बाद रही सही कसर ममता बनर्जी और केजरीवाल ने अपनी चालाकी से पूरी कर दी। चुपके से कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को इंडी का अध्यक्ष बना दिया। तर्क दिया कि कांग्रेस बड़ी पार्टी है। नीतीश कुमार की सर्वग्राह्य छवि ममता और केजरीवाल की आंखों में खटक रही थी। जाहिर है कि ममता -केजरीवाल का यह कदम नीतीश कुमार को अप्रिय लगना ही था। और इंडी की उस बैठक में उनकी नाराजगी की खबर भी चर्चा में रही। इसके बाद इंडी को लेकर नीतीश के सुर बदले। राजद, भ्रष्टाचार और परिवारवाद पर उनके तीखे बयान आए। घबराई भाजपा ने अपना दांव चलने का यह बेहतर मौका समझा। उसी समय अमित शाह का बयान आता है कि एनडीए के साथी यदि पुन: साथ आना चाहते हैं तो उस पर विचार किया जाएगा।
नीतीश के धुरविरोधी भी उनके संयोजक बनाने के पक्ष में
वैसे, बिहार में नीतीश के धुरविरोधी भी उनके इंडी का संयोजक बनाने की वकालत करते हैं। वे यह बात अक्सर कहते हैं कि यदि समय रहते नीतीश कुमार को इंडी का संयोजक बना दिया जाता तो इंडी काफी मजबूत स्थिति में रहती और भाजपा को अपने अश्वमेघ घोड़े को इस बार के चुनावी रण से निकालने में बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ता। भाजपा भी जानती थी कि बिना नीतीश को साधे इंडी को भंडोल नहीं किया जा सकता। यही वजह है कि जो नेता पहले कहते थे कि भाजपा के दरवाजे नीतीश के लिए हमेशा के लिए बंद हो गए हैं, उनको अपने कथन पर पुनर्विचार करना पड़ा।
फिर पाला बदलना नीतीश के लिए नहीं रहा होगा सुविधाजनक
जाहिर है, उधर, नीतीश के लिए भी फिर भाजपा के साथ जाना कोई सुविधाजनक फैसला नहीं रहा होगा। वह जानते होंगे कि एक बार फिर पाला बदलने पर उनकी काफी किरकिरी और जग हंसाई होगी। हुई भी। लेकिन इंडी के मौजूदा स्वरूप को देखकर तो लगता है कि नीतीश कुमार ने एकबार फिर दूरदर्शिता दिखाई और समय पर सही फैसला लिया।
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अनिल शर्मा ने आलाकमान को दिखाया आईना
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अनिल शर्मा के इस्तीफे और इसके लिए बताए गए कारणों से भी कई बातों का खुलासा हो जाता है। बिहार कांग्रेस के अन्य नेताओं और अनिल शर्मा में अंतर यही है कि उन्होंने सब कुछ खामोशी से सहा नहीं, बल्कि मुंह खोल दिया। अपने केन्द्रीय नेतृत्व को आईना दिखा दिया। गौरतलब है कि अनिल शर्मा बिहार में सीट शेयरिंग के बाद से ही वे अपनी पार्टी से नाराज चल रहे थे। औरंगाबाद और पूर्णिया की सीट ना मिलने से कांग्रेस कार्यकर्ताओं की नाराजगी से वह वाकिफ हैं। अनिल शर्मा ने प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देते हुए खड़गे को पत्र भेज दिया है। अपने इस्तीफे की वजह में कहा है कि राजद और कांग्रेस का गठबंधन सही नहीं है। यह कांग्रेस के लिए घातक है। यह भी कहा है कि सोनिया और राहुल के नेतृत्व में पार्टी सबसे कमजोर हुई। अध्यादेश फाड़ने वाले राहुल गांधी आज लालू के साथ गलबहियां कर रहे हैं। मटन बना-खा रहे हैं। कहा कि सोनिया गांधी के टेकओवर करने के बाद कांग्रेस में आंतरिक संविधान खत्म हो गया है। खड़गे रिमोट से कंट्रोल हो रहे हैं। जब तक दिल्ली में राहुल-सोनिया और बिहार में लालू-तेजस्वी रहेंगे तब तक राजद और कांग्रेस का गठबंधन बना रहेगा। यह भी आरोप लगाया है कि अगर लोकसभा चुनाव में महागठबंधन को चार-पांच सीटें आ गई तो तेजस्वी का जंगल राज आ जाएगा।