पटना। बिना पंडित पूजा, अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य और बेटी की मन्नत…. ऐसी कई खास बातें हैं इस महालोकपर्व में… आइए जानते हैं… बिहार से शुरू यह लोक आस्था का महापर्व क्यों पूरी दुनिया में फैलता जा रहा है।
आज 07/11/2024 है…
क्या महत्व है इस दिन का…
यह सबसे उत्तम महीना कार्तिक है…
और इस माह के शुक्ल पक्ष की आज षष्ठी तिथि है…
क्यों विशेष है यह दिन…
आज के दिन छठी मैया की पूजा की जाती है…
यह पूजा किसी जलस्रोत या जल कुंड के किनारे पहले डूबते और उगते भगवान भास्कर को अर्घ्य देकर की जाती है…
इसमें किसी पंडित को नहीं बुलाया जाता…
व्रती खुद ही लोक परंपरा के अनुसार पूजा करते हैं…
महिलाएं काफी शुद्धता से पकवान बनाती हैं…
पूजा के सभी पकवान शुद्ध घी और नई फसल के गेहूं व चावल के आटे से बनाए जाते हैं…
नए फल के साथ ही शकरकंद, मिश्रीकंद आदि भी अर्घ्य के सूप में रखे जाते हैं…
एक और खास बात…इस पूजा में नई फसल की सब्जियां भी प्रसाद में चढ़ाई जाती हैं… जैसे पत्तेदार अदरक, पत्ती वाली हल्दी, मूली, खीरा, सतालू वगैरह…
इस तरह यह पर्व विशुद्ध रूप से प्रकृति की पूजा है…
इसमें व्रती भगवान से बेटी की मन्नत मानते हैं…
पावन पर्व छठ के गीत की पंक्ति पर गौर करें – रुनकी – झुनकी बेटी मांगीला, पढ़ल – पंडित दामाद
अर्थात – सुंदर, सुशील, हँसने – बोलने वाली बेटी और पढ़ा – लिखा दामाद मिलने की कामना – प्रार्थना छठी मइया से की जाती है!!
नहाय-खाय से शुरू होता है चार दिनी छठ महापर्व का अनुष्ठान
इस महापर्व के अनुष्ठान की शुरुआत नहाय-खाय के साथ (इस बार मंगलवार 5 नवंबर से हुई) होती है। नहाय-खाय में व्रती स्नान के बाद भगवान भास्कर को अर्घ्य देकर नहाय-खाय का प्रसाद बनाते हैं और फिर प्रसाद के रूप में उसे ग्रहण करते हैं। प्रसाद में अरवा चावल, कद्दू वाली दाल, शुद्ध घी, धनिया की चटनी, आलू गोभी की सब्जी और मूली जरूरी है। प्रसाद सगे- संबंधियों के साथ ही मित्र-पड़ोसियों को भी खिलाते हैं। इसके साथ ही व्रती चार दिवसीय महापर्व अनुष्ठान का संकल्प लेते हैं। पटना समेत बिहार में गंगा किनारे बसे कई गांव – शहर के लोग नदी के किनारे ही गंगा जल से प्रसाद बनाते हैं।
खरना प्रसाद
वहीं, महापर्व के दूसरे दिन (इस बार बुधवार यानी 6 नवंबर की शाम को) खरना प्रसाद ग्रहण किया जाता है। खरना में मुहूर्त का विचार नहीं किया जाता है। व्रती गुड़ व ईख के रस से तैयार खीर, रोटी, मूली आदि खरना का प्रसाद का भोग लगाकर प्रसाद प्राप्त करते हैं। इसके साथ ही 36 घंटे का निर्जला-निराहार उपवास व्रत शुरु हो जाता है। गुरुवार को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। इस बार यह उपवास शुक्रवार यानी 8 नवम्बर की सुबह तक चलेगा। व्रती उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देकर अपना उपवास तोडेंगे। इसके बाद लोग ठेकुआ और फल आदि प्रसाद खाते हैं।
शुद्धता एवं पवित्रता
चार दिनों का यह अनुष्ठान काफी शुद्धता एवं पवित्रता के साथ किया जाता है। अधिकांश व्रती भगवान भास्कर को अर्घ्य नदी, पोखर या किसी अन्य प्राकृतिक जल स्रोत के तट पर ही देते हैं। वैसे अभी कई व्रती सुविधानुसार अपने घर पर या पास में कृत्रिम जलस्रोत तैयार कर भी अर्घ्य देते हैं।
आप सभी को…
बीआरबीजे न्यूज की तरफ से,
महापर्व छठ पर्व की हार्दिक बधाई
एवं शुभकामनाएं ..🙏🙏🌹🌹