भोला नाथ
पटना। ये पूरे बिहार के वित्तरहित शिक्षा संस्थानों के शिक्षक हैं। इनको वित्तरहित शिक्षक के नाम से पुकारते हैं। संख्या होगी लगभग 30 हजार। मगर, नियत वेतन या वेतनमान से कोसों दूर…!! आप यकीन करेंगे, इनकी तथाकथित सैलरी यानी तनख्वाह या कहें वेतन कितना मिलता होगा। आप हैरान होंगे कि छात्रों को शिक्षा-ज्ञान से नवाजने वाले इन गुरुजी को किसी माह 500 तो किसी माह अधिकतम हजार रुपए मिल पाता है। कुल मिलाकर साल में 5 से 6 हजार या बड़ी हद तो 10 से 12 हजार रुपए। महीने का हिसाब लगाएं तो बमुश्किल वही 500 से 1000 रुपए…!! वह भी जांच की सारी कसैटी पर खरे उतरे तो। तुर्रा यह कि सरकार का अनुदान जब कई बैरियर पार करके उनके स्कूल तक पहुंचेगा तब उनकी हथेली में आएंगी यह गिनी चुन्नी हुई रुपल्ली…!! यह भी जान लीजिए कि इन शिक्षण संस्थानों को वर्ष 2016 के बाद से अनुदान की राशि नहीं मिली है।
बड़ा गैप, स्थायी को महीने का एक लाख तो इनको हजार रुपए भी नहीं
राज्यभर में 1500 ऐसे शिक्षा संस्थान हैं। हाईस्कूल, इंटर स्कूल और डिग्री कालेजों को मिलाकर। इन संस्थानों के 30 हजार गुरुजी को पैसा हर माह पढ़ाने के एवज में नहीं मिलता है। बल्कि छात्र जब पास करते हैं तब। वह भी, फर्स्ट, सेकंड और थर्ड डिविजन में पास करने वाले छात्रों की संख्या के हिसाब से अलग-अलग निर्धारित राशि को जोड़कर। दूसरी ओर, राज्य में नियोजित शिक्षक हैं, जिनका नियत वेतन (वेतनमान नहीं) क्रमश: बढ़ते हुए 40 हजार से ऊपर पहुंच गया है। वहीं, बीपीएससी उत्तीर्ण वेतनमान वाले शिक्षकों की बात करें तो उनका वेतनमान आज 50 हजार से ऊपर है। बात स्थायी शिक्षकों की करें तो उनका वेतन एक लाख रुपए से अधिक है। इनके पढ़ाए बच्चे पास करें या न करें, नियत वेतन या वेतनमान नियमित उनके खाते में चला जाता है। अब जरा वेतन में अंतर देखिए, स्थायी शिक्षक को एक लाख से अधिक तो वित्तरहित शिक्षकों को हजार रुपए भी नहीं…।
पार्टियों से मिल समान काम के लिए समान वेतन की मांग की, पर नहीं सुनी
वैसे शिक्षक संगठन जिनकी शुमार ताकतवर शिक्षक संगठनों में होती है, वे भी इन वित्तरहित शिक्षकों को सपोर्ट नहीं करते हैं। ले–देकर एक बिहार प्रदेश माध्यमिक शिक्षक शिक्षकेत्तर कर्मचारी महासंघ है, जो इनके साथ है। इस महासंघ ने 15 दिन पूर्व सभी राजनीतिक दलों से मिलकर आवेदन देकर एवं मौखिक रूप से आग्रह किया था कि वर्षों से लंबित उनकी मांग-“समान काम के लिए समान वेतन” को अपने चुनाव घोषणा-पत्र में जोड़ें। आखिर वे भी शिक्षक हैं, विद्यार्थियों को पढ़ाते हैं, तो उनको भी सरकार सम्मानजनक वेतन या वेतनमान दे। लेकिन, इनका दर्द किसीने नहीं सुना।
राजनीतिक दलों को अपना वोट नहीं देंगे, नोटा में डालेंगे
हारकर इस संगठन ने सभी कोटि के वित्तरहित संस्थानों में कार्यरत इन शिक्षाकर्मियों को खेद जताते हुए यह सूचना दी है कि इस बार भी किसी भी राजनीतिक दल ने अपने चुनावी मैनिफेस्टो में उनकी इस मांग नहीं जोड़ा है। …और न ही किसी दल के प्रमुख नेता ने अपनी चुनावीसभा में मंच से वित्तरहित संस्थानों एवं शिक्षाकर्मियों के लिए यह कहा है कि हमारी सरकार बनेगी तो हम वित्तरहित शिक्षाकर्मियों को वेतन, वेतनमान या मानदेय देंगे। ऐसे में इन 30 हजार वित्तरहित शिक्षकों ने यह निर्णय लिया है कि य़दि राजनीतिक दलों ने उनकी एकमात्र मांग का समर्थन नहीं किया तो वे किसी भी दल को अपना वोट नहीं देंगे। बल्कि वे सभी ‘नोटा’ में वोट डालेंगे। यह अल्टीमेटम बिहार प्रदेश माध्यमिक शिक्षक-शिक्षकेत्तर कर्मचारी महासंघ के प्रांतीय संयोजक (पुनाईचक, पटना) राज किशोर प्रसाद साधु ने राज्य के वित्तरहित शिक्षाकर्मियों की तरफ से दी है।