भोला नाथ
पटना। आखिर ये अपना दुख दर्द किससे कहें…! दरअसल, वोट बैंक की सियासत में इस समुदाय की नुमांइदगी गुम हो गई…!! दशकों से अन्याय की पीड़ा झेल रहे हैं। हालांकि, इनके फेस्टिवल की जमकर इंटरनेशनल ब्रांडिंग होती है…, दलों को इनका वोट भी चाहिए…, मगर बिहार में पिछले 30 साल से इनकी कोई नुमाइंदगी नहीं…!! यह हकीकत है, बिहार के सिख समुदाय की…!!


बिहार विधानसभा – 2025 के इस बार के चुनाव में भी सिख समुदाय के लोगों की आस पूरी नहीं हो सकी। पिछले 30 सालों से यह समुदाय सियासी दलों की उपेक्षा का दंश झेल रहा है। पार्टियां इनका वोट तो लेती हैं, मगर इनके समुदाय से किसी को उम्मीदवार नहीं बनाती हैं। अपना टिकट नहीं देती हैं। हालांकि, बिहार के पटनासाहिब में ही सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी की जन्मस्थली है। यहां विश्वभर से श्रद्धालु आते हैं। राज्य सरकार प्रकाश उत्सव की जबरदस्त ब्रांडिंग करती है। लेकिन, बात यदि उम्मीदवारी की करें तो वर्ष 1995 यानी 30 साल पहले इंदरसिंह नामधारी को संयुक्त बिहार में डाल्टेनगंज से टिकट मिला था। उसके बाद तीन दशक के वक्फे में किसी भी सिख को किसी भी राजनीति दल से टिकट नहीं मिला। वजह शायद यह है कि ये किसी बड़े जातीय वोट बैंक में नहीं आते। चलिए, ये किसी जातीय वोट बैंक में नहीं आते, मगर इनको विधान परिषद में तो नुमाइंदगी दी ही जा सकती है। आखिर इस समुदाय की बातें, दर्द, पीड़ा सदन के माध्यम सरकार तक आखिर कैसे पहुंचाई जा सकेगी? सवाल यह है कि आखिर सिखों के साथ यह अन्याय क्यों।


आम तौर पर देखा गया है कि सभी दलों के बड़े नेता चाहे बिहार के हों या देश के अन्य राज्यों के, पटना आते ही उनको गुरु की नगरी पटनासाहिब की याद जरूर आती है। वे तख्त श्रीहरमंदर साहिब के दरबार में मत्था टेकना नहीं भूलते। राज्य सरकार गुरुसाहिब का फेस्टिवल भी जबरदस्त तरीके से मनाती है, मगर, सिख समुदाय को प्रतिनिधित्व देने से सभी बचते हैं। जबकि, यह देखा गया है कि बाहर के सिख समुदाय के लोगों में पटनासाहिब से आने वाले लोगों के लिए अकथनीय श्रद्धा होती है। वे उनको गुरु की नगरी से आया मान काफी सत्कार करते हैं।
सिख सभी दलों का झंडा ढोते हैं, मगर सियासी भागीदारी शून्य
सिख नेता और राजद अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय सचिव सरदार रंजीत सिंह कहते हैं कि पूर्व मंत्री और राजद के वरिष्ठ नेता रामचन्द्र पूर्वे ने आश्वासन दिया था कि उनकी पार्टी सिख समुदाय से बिहार विधान परिषद का सदस्य (एमएलसी) जरूर बनाएगी। रंजीत सिंह कहते हैं कि उनके समुदाय के लोग सभी दलों से जुड़े है। हमेशा उनका झंडा ढोते हैं। मगर, बदले में आजतक कुछ नहीं मिला। वहीं, बात उत्तर प्रदेश की करें तो सपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा है कि यदि उत्तर प्रदेश में उनकी पार्टी की सरकार बनी तो वे सिख समुदाय से एक कैबिनेट मंत्री जरूर बनाएंगे। इससे पहले उनके पिता मुलायम सिंह यादव ने अपनी सरकार में हमारे समुदाय से एक शख्स को मंत्री बना चुके हैं।

सरदार रंजीत सिंह
रंजीतसिंह कहते हैं कि पाकिस्तान के एक प्रांत में सिखों की आबादी 25 हजार के करीब है, वहां भी सरकार में एक कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। इसका अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सिख समुदाय ने जमकर खैरमकदम किया है। वहीं, बिहार में इनकी तादाद करीब 20 हजार है, लेकिन, विधानसभा से लेकर विधान परिषद तक सिखों की राजनीतिक भागीदारी शून्य है। इंदर सिंह नामधारीसे पहले कांग्रेस ने उचला एस्टेट (कटिहार) के मौलेश्वर प्रसाद सिंह को एमएलसी (1974 से 86 तक) बनाया था।
पार्टियां वोट बैंक और जातीय समीकरण देख टिकट देतीं हैं
पटना के गुरु सिंह सभा के अध्यक्ष और बिहार सिख प्रतिनिधि बोर्ड के सदस्य सरदार कुलदीप सिंह बग्गा भी सियासी दलों की बेरुखी से क्षुब्ध हैं। उनका भी आरोप है कि सियासी दल वोट बैंक और जातीय समीकरण देखकर टिकट देते हैं। सिख भी अल्पसंख्यक समुदाय में आता है, मगर, यहां तवज्जो मुस्लिम समुदाय को दिया जाता है, जबकि देखें तो तादाद के हिसाब से देखें अब मुस्लिम इसके असल हकदार नहीं हैं।

सरदार कुलदीप सिंह बग्गा
कुलदीप सिंह बग्गा कहते हैं कि विधायक तो दूर बिहार में हमारे सिख समुदाय से कोई एमएलसी भी नहीं है। ऐसे में कौन हमारी बात सदन में उठाएगा? कैसे सरकार तक हमारी परेशानी पहुंचेगी?